अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। ठग लोगों को डिजिटल अरेस्ट स्कैम में फंसाकर उन्हें धमकाते हैं।
Digital Arrest Scam: देशभर में जालसाजों के मामले में डिजिटल अरेस्ट स्कैम भी खूब हो रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट के जरिए लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाओं पर अपनी चिंता जताई है। इसके साथ ही उन्होंने देशवासियों को ऐसे स्कैम से सावधान रहने की चेतावनी भी दी है। इनसब के बीच आपसे एक सवाल क्या आप जानते हैं डिजिटल अरेस्ट क्या है? डिजिटल अरेस्ट की पहचान कैसे करते हैं और इससे बचने के लिए क्या कर सकते हैं?
क्या है डिजिटल अरेस्ट
डिजिटल अरेस्ट एक साइबर स्कैम है। इसमें स्कैमर लोगों को कॉल करके खुद को पुलिस, सीबीआई, नारकोटिक्स, आरबीआई, दिल्ली या मुंबई के पुलिस अधिकारी बनकर पुरे आत्मविश्वास से बात करते हैं। जब आप इनसे WhatsApp या Skype कॉल पर कनेक्ट होते हैं, तो नकली अधिकारी पूरी तरह से असली लगते हैं। स्कैमर इसमें लोगों को भावनात्मक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। इसके साथ ही वह लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि उनके या उनके परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बुरा हुआ है या होने वाला है। ऐसे में सामने वाला व्यक्ति उनकी बातों पर विश्वास कर लेते हैं।
कैसे करते हैं स्कैमर्स परेशान
- WhatsApp पर अनजान नंबर से वीडियो कॉल आती है।
- घोटाले में फंसने या परिवार के किसी सदस्य के किसी मामले में फंसने की जानकारी दी जाती है।
- पीड़ित को लगातार वीडियो कॉल पर रहने के लिए मजबूर किया जाता है।
- स्कैमर पीड़ित पर मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग व्यापार या अन्य अवैध गतिविधियों का आरोप लगाते हैं।
- पीड़ित को धमकाया जाता है कि वह इस बारे में किसी को कुछ ना बताएं।
- वीडियो कॉल करने वाले व्यक्ति का बैकग्राउंड किसी पुलिस स्टेशन जैसा दिखता है।
- पीड़ित को लगता है कि पुलिस उससे ऑनलाइन पूछताछ कर रही है।
- केस बंद करने और गिरफ्तारी से बचने के लिए मोटी रकम मांगी जाती है।
कैसे पहचाने डिजिटल अरेस्ट के बारे में
डिजिटल अरेस्ट की पहचान के लिए आपको सबसे पहले अलर्ट पर रहने की जरूरी है। अगर आपके पास भी किसी अनजान नंबर से फोन या WhatsApp कॉल आता है तो उसे रिसीव करते समय मुंबई पुलिस की एडवाइजरी याद रखें।
मुंबई पुलिस की एडवाइजरी
- पुलिस अधिकारी अपनी पहचान बताने के लिए कभी भी वीडियो कॉल नहीं करेंगे।
- पुलिस आपसे कभी भी कोई ऐप डाउनलोड करने के लिए नहीं कहेंगे।
- पहचान पत्र, एफआईआर और गिरफ्तारी वारंट की प्रतियां ऑनलाइन शेयर नहीं की जाएंगी।
- पुलिस कभी भी वॉयस या वीडियो कॉल पर बयान दर्ज नहीं करते हैं।
- पुलिस पैसे या व्यक्तिगत जानकारी देने के लिए लोगों को डराते या धमकाते नहीं हैं।
- पुलिस आपको कॉल के दौरान अन्य लोगों से बात करने से नहीं रोकती है।
- कानून में डिजिटल गिरफ्तारी का कोई प्रावधान नहीं है,
- असली गिरफ्तारी तब होती है जब कोई अपराध किया जाता है।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?
- कोई भी सरकारी जांच एजेंसी आधिकारिक बातचीत के लिए WhatsApp या Skype जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग नहीं करतीं।
- ठग डिजिटल अरेस्ट के लिए पीड़ितों को फोन कॉल, ई-मेल से संदेश भेजते हैं।
- ठग फोन पर गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं। उनकी बातचीत और फ़र्जी बहसें डराने वाली हो सकती हैं, लेकिन घबराएँ नहीं।
- कॉल या वीडियो कॉल पर धोखेबाजों के सवालों और तर्कों का जवाब देने में जल्दबाजी न करें। शांत रहें, बस सुनें।