पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, डिजिटल फुटप्रिंट्स ने पाकिस्तान से जुड़े एक आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफाश किया।
Digital Footprint : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को दुख और गुस्से से भर दिया है। इस हमले में अबतक 26 मासूम लोगों की जान चली गई है, जिसके बाद पूरे भारत में आक्रोश है और लोग सरकार से सख्त एक्शन की मांग कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियां अब सिर्फ बंदूक और बम नहीं, बल्कि डिजिटल सबूतों पर भी फोकस कर रही हैं और इन्हें ही कहा जाता है Digital Footprint।
क्या होता है Digital Footprint?
जैसे हम कहीं जाते हैं और हमारे पैर पीछे निशान छोड़ जाते हैं, वैसे ही इंटरनेट पर हमारी हर एक्टिविटी का एक निशान बनता है। जब हम Google पर कुछ सर्च करते हैं, कोई वीडियो देखते हैं, वेबसाइट खोलते हैं या किसी से चैट करते हैं, तो इन सभी कामों का एक डिजिटल रिकॉर्ड बनता है। यही Digital Footprint कहलाता है। सुरक्षा एजेंसियां इसी Digital Footprint की मदद से ये पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि हमले में शामिल आतंकियों का किससे संपर्क था, उन्होंने कहां से जानकारी हासिल की, किस ऐप का इस्तेमाल किया और क्या वे पाकिस्तान के किसी ठिकाने से जुड़े हुए थे।
Digital Footprint के दो रूप
Digital Footprint दो तरह के होते हैं। इनमें एक्टिव Digital Footprint और पैसिव Digital Footprint शामिल है।
- एक्टिव डिजिटल फुटप्रिंट: यह वह जानकारी होती है, जो हम खुद अपनी मर्जी से इंटरनेट पर डालते हैं। जैसे कि सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट या फोटो शेयर करना, किसी वेबसाइट पर कमेंट करना, फॉर्म भरना या किसी न्यूजलेटर के लिए साइन अप करना शामिल है।
- पैसिव डिजिटल फुटप्रिंट: यह वो डेटा होता है, जो हमारे बिना जाने रिकॉर्ड हो जाता है। जैसे कि आप किस वेबसाइट पर गए, आपने वहां कितनी देर बिताई, आपने किस लिंक पर क्लिक किया या माउस रखा, यह जानकारी बैकग्राउंड में इकट्ठी होती रहती है, और हमें इसका एहसास तक नहीं होता।
कैसे खुला आतंकियों का पाकिस्तान कनेक्शन?
पहलगाम हमले के बाद जब सुरक्षा एजेंसियों ने घटनास्थल से बरामद मोबाइल, लैपटॉप और रेडियो जैसे डिवाइस की जांच की, तो चौंकाने वाले डिजिटल सुराग सामने आए। आतंकियों ने एन्क्रिप्टेड चैटिंग ऐप्स का यूज किया था, जिन्हें ट्रैक करना बेहद मुश्किल होता है, लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों ने डिजिटल फुटप्रिंट की मदद से पता लगा लिया कि इन ऐप्स से की गई बातचीत सीधे पाकिस्तान के कुछ लोकेशनों से हो रही थी। जांच में साफ हुआ कि बातचीत मुजफ्फराबाद और कराची जैसे पाकिस्तानी शहरों में मौजूद कुछ खास ठिकानों से की जा रही थी।
क्यों जरूरी है डिजिटल फुटप्रिंट की जानकारी?
आजकल की लड़ाई सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि जानकारी और टेक्नोलॉजी से भी लड़ी जाती है। ऐसे में डिजिटल फुटप्रिंट यानी इंटरनेट पर हमारे द्वारा छोड़े गए निशान बहुत अहम हो जाते हैं। ये फुटप्रिंट ऐसे सुराग होते हैं जो किसी भी बड़ी साजिश की परतें खोल सकते हैं।
आम लोग भी छोड़ते हैं डिजिटल निशान
आप जब कोई वेबसाइट खोलते हैं, Google पर कुछ सर्च करते हैं या सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट लाइक करते हैं, तो ये सब आपकी ऑनलाइन पहचान का हिस्सा बन जाता है। यही वजह है कि आपने अगर कभी मोबाइल या शूज सर्च किया हो, तो कुछ देर बाद हर जगह उसी से जुड़े विज्ञापन दिखने लगते हैं।