Google Antitrust Case: Google लंबे समय से अपने सर्च इंजन और ऑनलाइन विज्ञापन कारोबार पर एकाधिकार के आरोपों का सामना कर रही है। इस मामले में मंगलवार को बड़ा फैसला आया। वॉशिंगटन डीसी की अदालत में जज अमित मेहता ने साफ कर दिया कि गूगल को अपना लोकप्रिय क्रोम ब्राउजर और एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम बेचने की जरूरत नहीं है। यह कंपनी के लिए राहत की बात है। हालांकि, अदालत ने Google पर सख्ती भी दिखाई है। अब कंपनी को अपना सर्च डेटा प्रतिस्पर्धियों के साथ शेयर करना होगा और उसे ऐसे एक्सक्लूसिव समझौते करने से रोका गया है जो दूसरी कंपनियों को नए डिवाइस पर जगह पाने से रोकते हैं। आइए जानते हैं कि यह पूरा केस कैसे शुरू हुआ? इसमें अब तक क्या-क्या हुआ और आगे क्या होने की संभावना है।
Google के खिलाफ एंटीट्रस्ट केस में कोर्ट का बड़ा फैसला, क्रोम-एंड्रॉइड बेचने की जरूरत नहीं, लेकिन अब Google को सर्च डेटा शेयर करना होगा और एक्सक्लूसिव समझौते खत्म करने होंगे।
कैसे शुरू हुआ केस
20 अक्टूबर 2020 को ट्रंप प्रशासन के दौरान न्याय विभाग (DOJ) ने Google पर केस दायर किया। आरोप था कि कंपनी ने सर्च इंजन और विज्ञापन मार्केट में अवैध तरीके से दबदबा बना रखा है। यह पहली बार था जब किसी बड़ी टेक कंपनी पर इस तरह का कोई मुकदमा हुआ। बाद में जो बाइडेन प्रशासन ने भी इस केस को आगे बढ़ाया।
Google का बचाव
2023 को जज मेहता के सामने Google ने दलील दी कि उसने अपनी जगह क्वालिटी सर्विस देकर बनाई है न कि किसी गैरकानूनी तरीके से। 16 नवंबर 2023 को Google के सीईओ सुंदर पिचाई गवाही देने पहुंचे। यहां उन्होंने स्वीकार किया कि डिफॉल्ट सर्च इंजन बने रहना कंपनी के लिए बेहद अहम है।
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अहम सबूत और सुनवाई
- 2 और 3 मई 2024 को इस केस में समापन बहस हुई। जज ने सवाल किया कि आखिर Google के प्रतिद्वंद्वी कंपनियां कैसे टिकेंगी और क्या एडवरटाइजर सोशल मीडिया विज्ञापनों को सर्च विज्ञापन का विकल्प मान सकते हैं।
- 5 अगस्त 2024 को जज मेहता ने Google को अमेरिकी एंटीट्रस्ट कानून तोड़ने का दोषी ठहराया और कहा कि Google का कोई सच्चा प्रतिस्पर्धी नहीं है।
- 20 नवंबर 2024 को अभियोजकों ने 10 साल की सख्त योजना पेश की। इसमें Google को क्रोम बेचने, Apple जैसी कंपनियों को डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाने के लिए भुगतान बंद करने और AI कंपनियों में निवेश रोकने जैसी शर्तें थीं।
- 20 दिसंबर 2024 को Google ने कहा कि यह उपाय बेहद कठोर हैं। उसने केवल साझेदार कंपनियों के साथ समझौते ढीले करने का प्रस्ताव दिया।
2025 की गवाही और बहस
- 7 मार्च 2025 को ट्रंप प्रशासन के नए अधिकारियों ने ज्यादातर कड़े प्रस्तावों का समर्थन किया लेकिन AI निवेश बेचने की शर्त हटा दी।
- 21 अप्रैल 2025 को नए ट्रायल की शुरुआत हुई। अभियोजकों ने कहा कि Google का दबदबा अब AI तक बढ़ रहा है इसलिए सख्त कदम जरूरी हैं। इस दौरान OpenAI ने कहा कि अगर Google डेटा साझा करता है तो ChatGPT जैसे मॉडल बेहतर हो सकते हैं। वहीं, सुंदर पिचाई ने चेतावनी दी कि डेटा शेयरिंग से प्रतिस्पर्धी Google की नकल कर लेंगे।
- 30 मई 2025 को समापन बहस हुई। जज ने संकेत दिए कि वे इतने सख्त कदम नहीं उठाएंगे क्योंकि AI तेजी से बदल रहा है।
- 3 जून 2025 को Google ने अपील की तैयारी करते हुए ओबामा प्रशासन के पूर्व सॉलिसिटर जनरल डोनाल्ड वेरीली जूनियर को वकील नियुक्त किया।
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क्या है ताजा फैसला
2 सितंबर को जज मेहता ने कहा कि Google को अपना क्रोम ब्राउजर और एंड्रॉइड OS बेचने की जरूरत नहीं है लेकिन कंपनी को अपने सर्च डेटा प्रतिस्पर्धियों के साथ शेयर करना होगा और वह अब ऐसे डील नहीं कर पाएगी जो दूसरे ऐप्स या सेवाओं को प्री-इंस्टॉल होने से रोकें।
आगे क्या होगा?
Google ने साफ कर दिया है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा। इसके लिए उसके पास अंतिम आदेश के बाद 30 दिन का समय होगा। यह अपील 2027 या उससे आगे तक खिंच सकती है।