भारत में 7 मई को एक मॉक ड्रिल होने वाली है, जिसमें वॉर सायरन बजाया जाएगा। इस ड्रिल का मकसद लोगों को आपात स्थिति में सतर्क करना है।
India-Pakistan Tension: भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए देश की सुरक्षा एजेंसियों ने अब अपनी कमर कस ली है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। इसी के तहत 7 मई को एक मॉक ड्रिल की जाएगी, जिसमें एयर रेड वॉर्निंग सायरन बजाया जाएगा। इस बीच काफी लोगों के मन में सवाल है कि ये एयर रेड सायरन होता क्या है और इसका मकसद क्या है? तो आइए इन्हीं सब सवालों के जवाब।
एयर रेड सायरन क्या होता है?
एयर रेड सायरन एक तेज और खास तरह की आवाज होती है, जो लोगों को संभावित खतरे के बारे में चेतावनी देने के लिए बजाई जाती है। इस सायरन का मकसद लोगों को अलर्ट करना है, ताकि वह तुरंत किसी सेफ जगह पर चले जाएं। जैसे काम के लिए होता है। यह सायरन आमतौर पर 60 सेकंड के लिए बजाया जाता है।
क्यों जरूरी है मॉक ड्रिल?
मॉक ड्रिल का मतलब असली खतरे से पहले की एक तैयारी होती है। इसमें यह देखा जाता है कि सिस्टम सही तरीके से काम कर रहा है या नहीं या फिर लोग ऐसी स्थिति में कैसे रिएक्ट करते हैं। मॉक ड्रिल से किसी भी आपातकाल में नुकसान को कम किया जा सकता है।
तकनीक और क्या मोबाइल भी देंगे अलर्ट?
भारत में 7 मई को एक मॉक ड्रिल होने वाली है, जिसमें वॉर सायरन बजाया जाएगा। इस ड्रिल का मकसद लोगों को आपात स्थिति में सतर्क करना है। हालांकि, यह साफ नहीं है कि इस ड्रिल में कौन-सी तकनीक का इस्तेमाल होगा, लेकिन दुनियाभर में सायरन सिस्टम को चलाने के लिए अलग-अलग टेक्नोलॉजी अपनाई जाती है।
वॉर सायरन कैसे काम करते हैं?
- एयर सायरन: ये पुराने जमाने से चलन में हैं। इनमें एक घूमने वाली डिस्क होती है जिसमें छेद होते हैं। हवा जब इन छेदों से गुजरती है तो तेज़ और लगातार आवाज़ निकलती है, जो खतरे का संकेत देती है।
- बिजली से चलने वाले सायरन: इन सायरनों में एक डायाफ्राम या हॉर्न होता है जो बिजली की मदद से कंपन करता है और ज़ोरदार आवाज़ पैदा करता है।
- इलेक्ट्रॉनिक सायरन: ये सबसे आधुनिक तकनीक है। इनमें डिजिटल सिस्टम और स्पीकर होते हैं। इन्हें रेडियो फ्रीक्वेंसी या कंट्रोल सिस्टम से रिमोटली भी ऑपरेट किया जा सकता है।
क्या मॉक ड्रिल में मोबाइल भी देंगे चेतावनी?
कुछ लोगों के मन में सवाल है कि क्या मॉक ड्रिल के समय मोबाइल फोन भी अलर्ट देंगे। भारत में अभी तक ऐसा सिस्टम आधिकारिक तौर पर लागू नहीं हुआ है, लेकिन विदेशों में यह तकनीक पहले ही टेस्ट हो चुकी है।