अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में कहा कि भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप 2025 के अंत तक तैयार हो जाएगी।
Ashwini Vaishnav : भारत अब सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनने की ओर एक बड़ा कदम उठा रहा है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में जानकारी दी है कि भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप 2025 के अंत तक तैयार हो जाएगी। यह चिप सितंबर या अक्टूबर 2025 तक पेश की जा सकती है। सेमीकंडक्टर बनाने के लिए जरूरी पांच प्रमुख यूनिट्स पर काम जोरों पर है और यह प्रोजेक्ट समय पर आगे बढ़ रहा है।
कहां बन रही है ये चिप?
इस चिप को गुजरात के धोलेरा में बन रही फैब्रिकेशन यूनिट में तैयार किया जा रहा है। यह यूनिट पूरी तरह शुरू होने के बाद भारत का सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग हब बन जाएगी। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को Semicon India कार्यक्रम के तहत चलाया जा रहा है। इसमें Tata Electronics और ताइवानी कंपनी PSMC भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं। इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने दिसंबर 2021 में मंजूरी दी थी और इसके लिए 76,000 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है।
भारत बना रहा है अपना खुद का AI मॉडल
भारत एक अपना खुद का Large Language Model तैयार कर रहा है। ये मॉडल खासतौर पर भारतीय भाषाओं और संस्कृति को ध्यान में रखकर बनाया जाएगा, ताकि ये भारतीयों के लिए ज्यादा उपयोगी साबित हो। इस मॉडल का पहला वर्जन आने वाले 4 से 10 महीनों में लॉन्च हो सकता है। इस प्रोजेक्ट पर पिछले डेढ़ साल से भारत की टीमें, स्टार्टअप्स, प्रोफेसर्स और रिसर्चर्स के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अब देशभर से LLM मॉडल डेवलप करने के लिए प्रस्ताव मंगवाए जा रहे हैं।
पावरफुल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार
भारत के पास अब 18,000 से ज्यादा हाई-परफॉर्मेंस GPUs हैं, जो इस AI प्रोजेक्ट को ट्रेन करने में इस्तेमाल होंगे। इनमें NVIDIA H100, H200 और MI325 जैसे लेटेस्ट यूनिट्स शामिल हैं। तुलना करें तो ChatGPT को लगभग 25,000 GPUs की जरूरत पड़ी थी, जबकि चीन के DeepSeek AI को सिर्फ 2,500 GPUs से ट्रेन किया गया।
डेवलपर्स के लिए सस्ती सुविधा
भारत सरकार ने एक कॉमन कंप्यूटिंग सेंटर भी बनाया है, जहां स्टार्टअप्स और शोधकर्ता बिना ज्यादा खर्च किए इन पावरफुल GPUs का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस सेंटर में अभी 10,000 GPUs काम कर रहे हैं, और बाकी जल्द ही जुड़ने वाले हैं। सरकार ने इसके साथ-साथ IISc बेंगलुरु को 334 करोड़ रुपये भी दिए हैं, ताकि वो गैलियम नाइट्राइड तकनीक पर रिसर्च कर सके। ये तकनीक आने वाले समय में टेलीकॉम और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए बेहद ज़रूरी होगी।