Noam Shazeer controversy जिस Noam Shazeer को 2024 के अंत में जब Google ने Character.AI के साथ 22,000 करोड़ रुपये की डील कर शज़ीर को दोबारा अपनी टीम में शामिल किया। जिसे “AI ब्रेन की घर वापसी” कहा गया। वही व्यक्ति अब अपने विवादित बयानों की वजह से Google के भीतर बवाल खड़ा हो गया हैं। कंपनी ने उनके कुछ टिप्पणियों को लेकर कार्रवाई भी की है और उन्हें आंतरिक मंचों पर सेंसर किया गया है।
इनोवेशन और विचारों की आज़ादी के बीच फंसी Google की दुनिया, AI के जीनियस नोआम शज़ीर का वो बयान जिसके बाद से मचा हुआ है बवाल
शज़ीर का बयान जो बन गया विवादित
दरअसल, Noam Shazeer ने एक इंटरनल फोरम पर जेंडर आइडेंटिटी और बच्चों पर मेडिकल इंटरवेंशन को लेकर निजी राय रखी, जो कंपनी की समावेशी नीतियों से अलग थी। उन्होंने फोरम पर अपनी राय देते हुए लिखा कि “मेरा मानना नहीं है कि इंसानों में ‘जेंडर’ जैसी कोई निश्चित विशेषता होती है और न ही मैं मानता हूं कि भगवान किसी को गलत शरीर में भेजते हैं। बच्चों को बांझ बनाना भी सही नहीं है। सभी को अपनी मान्यताओं का अधिकार है लेकिन मैं इन मान्यताओं से सहमत नहीं हूं। बस, उनके इसीबयान ने Google के अंदर हलचल मचा दी। कंपनी के लोग दो खेमे में लोग बंट गए। एक तरफ वे कर्मचारी हैं जो मानते हैं कि विचारों की आज़ादी हर वैज्ञानिक और इंजीनियर का मूल अधिकार है, तो वहीं दूसरी तरफ वे लोग हैं जो कहते हैं कि कंपनी पॉलिसी से टकराने वाली विचार संस्थागत माहौल को नुकसान पहुंचा सकती है।
कौन है नोआम शज़ीर?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में अगर किसी एक नाम ने तकनीक की दिशा बदली है, तो वो हैं नोआम शज़ीर। यह वही शख्स है जिन्होंने Transformer model की नींव रखी। इसी मॉडल पर आज के ChatGPT और Gemini जैसे चैटबॉट खड़े हैं। ये सभी इन्हीं के दिमाग का ऊपज है। नोआम शज़ीर ने Google Brain और Transformer Model के जरिए AI की दुनिया में क्रांति ला दी थी। उन्होंने Meena चैटबॉट बनाया जो ChatGPT से पहले दुनिया का सबसे उन्नत संवाद मॉडल माना गया था। जब Google ने Meena को सार्वजनिक नहीं किया, तो शज़ीर ने 2021 में कंपनी छोड़ दी और Character.AI की स्थापना की। एक ऐसा प्लेटफॉर्म जिसने “पर्सनलाइज्ड AI इंटरैक्शन” का नया युग शुरू किया।
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कॉरपोरेट नैतिकता बनाम फ्री स्पीच
शज़ीर के समर्थन में Elon Musk ने भी X पर लिखा “Noam is right.” मस्क पहले भी ‘वोक माइंड वायरस’ के विरोध में बयान देते रहे हैं। उनका यह खुला समर्थन इस बहस को सिर्फ Google तक सीमित नहीं रहने देता बल्कि यह सवाल उठाता है कि क्या AI इनोवेशन के दौर में कॉरपोरेट नैतिकता और फ्री स्पीच एक-दूसरे के विरोधी बनते जा रहे हैं?
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तो क्या सिमट कर रह जाएगी सोचने की आज़ादी?
नोआम शज़ीर का मामला सिर्फ एक बयान का नहीं यह उस संघर्ष का प्रतीक बन गया है जो आज हर बड़ी टेक कंपनी में चल रहा है। जहां एक तरफ कंपनियां “डाइवर्सिटी और इंक्लूजन” की नीति पर ज़ोर देती हैं, वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को खुलकर सोचने और सवाल करने की आज़ादी भी चाहिए। शज़ीर का विवाद इस संतुलन की नाजुक रेखा को उजागर करता है और शायद यही टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी चुनौती भी है|
