Cocoon AI: Telegram के को-फाउंडर पैवल दुरोव ने एक नया AI प्रोजेक्ट लॉन्च किया है जिसका नाम है Cocoon। यह प्रोजेक्ट इस वादे के साथ आया है कि यह यूजर्स को पूरी तरह सुरक्षित और निजी AI अनुभव देगा। Cocoon अब लाइव है और प्लेटफॉर्म ने पहले ही असली यूजर्स से AI रिक्वेस्ट प्रोसेस करना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि जिन लोगों के पास ताकतवर GPU कंप्यूटर हैं, वे इन्हें नेटवर्क पर जोड़कर Toncoin भी कमा रहे हैं।
दुरोव ने बताया कि Amazon और Microsoft जैसी बड़ी कंपनियां AI कंप्यूटिंग में बीच के महंगे ‘मिडलमैन’ की तरह काम करती हैं। इससे यूजर्स को ज्यादा खर्च और कम प्राइवेसी मिलती है। Cocoon का उद्देश्य इन दोनों समस्याओं को खत्म करना है ज्यादा गोपनीयता और कम खर्च।
Telegram के को-फाउंडर Pavel Durov ने नया AI प्लेटफॉर्म Cocoon लॉन्च किया है, जो 100% प्राइवेसी और TON Blockchain पर सुरक्षित AI प्रोसेसिंग का वादा करता है।
Cocoon क्या है और Telegram ने इसे क्यों बनाया?
Cocoon एक डिसेंट्रलाइज्ड AI कंप्यूटिंग नेटवर्क है, जो TON Blockchain पर चलता है। यहां शक्तिशाली GPU रखने वाले लोग इन्हें दूसरों के AI मॉडल चलाने के लिए किराए पर दे सकते हैं। बदले में उन्हें TON क्रिप्टोकरेंसी मिलती है।
🐣 It happened. Our decentralized confidential compute network, Cocoon, is live. The first AI requests from users are now being processed by Cocoon with 100% confidentiality. GPU owners are already earning TON. https://t.co/jDBwQNutH6 is up.
🏦 Centralized compute providers such…
— Pavel Durov (@durov) November 30, 2025
इस प्लेटफॉर्म की सबसे खास बात गोपनीयता है। Cocoon का दावा है कि यूजर की हर इनपुट और आउटपुट TEE के अंदर सुरक्षित रहती है। यानी न सर्वर मालिक, न डेवलपर कोई भी यह नहीं देख सकता कि यूजर ने AI से क्या पूछा।
दुरोव का कहना है कि Cocoon उन लोगों के लिए बनाया गया है जिन्हें चिंता है कि बड़ी AI कंपनियां उनका डेटा इकट्ठा कर रही हैं। Telegram का लक्ष्य है कि AI फीचर्स 100% प्राइवेसी के साथ दिए जाएं।
READ MORE: Apple की क्रिप्टोकरेंसी iToken में इन्वेस्ट करने से पहले जानें सच्चाई
Cocoon कैसे काम करता है?
इस सिस्टम में तीन हिस्से होते हैं Clients, Proxies और Workers। Proxy और Worker दोनों Intel TDX जैसी हार्डवेयर तकनीक के अंदर चलते हैं, जिससे कोई भी अंदर की प्रोसेसिंग नहीं देख सकता। भुगतान भी ऑटोमेटिक है। क्लाइंट प्रॉक्सी को पैसे देता है, प्रॉक्सी वर्कर को देता है और एक छोटा कमीशन रखता है। यह सब TON ब्लॉकचेन पर होता है। अभी पूरी प्रॉक्सी Telegram टीम चला रही है मगर आगे इसे खुला और ज्यादा डिसेंट्रलाइज्ड बनाया जाएगा।
READ MORE: क्रिप्टोकरेंसी मार्केट में भारी लिक्विडेशन: Bitcoin और Ethereum गिरावट में
भारत के लिए क्यों खास?
भारत में Telegram का इस्तेमाल पहले ही बहुत तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में प्राइवेसी-फोकस्ड AI फीचर्स लोगों को बहुत पसंद आ सकते हैं। इसके अलावा जिन लोगों के पास GPU हैं, उनके लिए Cocoon से इनकम कमाने का भी मौका है। प्रोजेक्ट अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन तेजी से बढ़ रहा है। आने वाले हफ्तों में और GPU और डेवलपर इस नेटवर्क से जुड़ेंगे।
