Zoho Privacy Policy: Zoho के को-फाउंडर और CEO श्रीधर वेंबू ने एक बार फिर डिजिटल प्राइवेसी पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने X पर एक पोस्ट के जरिए तीन दिलचस्प उदाहरणों के माध्यम से बताया कि Zoho कंपनी यूजर्स की प्राइवेसी की रक्षा कैसे करती है और कानून की सीमाओं में तकनीक की भूमिका क्या है। अपने साफ और सीधे अंदाज के लिए मशहूर वेंबू ने इस विषय को बेहद आसान और व्यावहारिक तरीके से समझाया।
Zoho CEO श्रीधर वेंबू ने डिजिटल प्राइवेसी को समझाने के लिए सरल उदाहरण दिए और स्पष्ट किया कि कंपनियां डेटा सुरक्षा में सक्षम हैं, लेकिन कानून की सीमाएं हमेशा रहती हैं।
तीन उदाहरणों में समझाई प्राइवेसी की परिभाषा
वेंबू ने अपनी पोस्ट में सीक्रेट लवर केस, एड वायलेशन केस और सीक्रेट रेबेल केस तीन केस बताए हैं। इन तीनों उदाहरणों से उन्होंने समझाया कि प्राइवेसी कोई एक शब्द नहीं है बल्कि यह भरोसे, नीयत और कानून की सीमाओं से मिलकर बनती है। उनकी यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से चर्चा में आ गई है क्योंकि उन्होंने प्राइवेसी जैसे कठिन टॉपिक को बहुत आसान भाषा में समझाया।
‘सीक्रेट लवर केस’
वेंबू ने सबसे पहले ‘सीक्रेट लवर केस का उदाहरण दिया है। उन्होंने लिखा कि यह केस किसी व्यक्ति के सबसे निजी संवाद या किसी कंपनी के व्यापारिक रहस्यों से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि Zoho की प्राथमिकता सबसे पहले इस श्रेणी की प्राइवेसी की सुरक्षा है। उन्होंने बताया कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं कि आपकी प्राइवेट बातचीत और डेटा पूरी तरह सुरक्षित रहें। हमारी तकनीक और प्रोडक्ट इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। यानी कि Zoho अपने यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी और कंपनियों के व्यापारिक रहस्यों की पूर्ण गोपनीयता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
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‘एड वायलेशन केस’
इसके बाद वेंबू ने डिजिटल विज्ञापन के मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा कि आजकल लोग तब असहज महसूस करते हैं जब उनका डेटा इस्तेमाल कर उन्हें विज्ञापन दिखाए जाते हैं। उन्होंने लिखा हमने यह वादा किया है कि हम कभी भी आपका डेटा बेचने या विज्ञापन के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं करेंगे। यह न सिर्फ आपको डेटा के दुरुपयोग से बचाता है, बल्कि कंपनियों के कॉन्फिडेंशियल डेटा को भी सुरक्षित रखता है।
वेंबू का मानना है कि जब कंपनियां डेटा माइनिंग या विज्ञापन नेटवर्क्स से दूर रहती हैं, तो वे अपने व्यावसायिक रहस्यों को भी सुरक्षित रख पाती हैं।
‘सीक्रेट रेबेल केस’
तीसरे और सबसे जटिल उदाहरण में वेंबू ने ‘सीक्रेट रेबेल केस’ की बात की। यह मामला उन लोगों से जुड़ा है जो उम्मीद करते हैं कि टेक कंपनियां उन्हें सरकारों के खिलाफ गुप्त रूप से बचाएंगी।
वेंबू ने कहा कि किसी भी देश में काम करने वाली कंपनी अगर यह वादा करती है कि वह अपने देश की सरकार के खिलाफ जाने वाले किसी व्यक्ति को बचा सकती है, तो यह झूठा वादा है। कानून और संप्रभु शक्ति हमेशा कंपनियों से बड़ी होती है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चाहे Google या Apple जैसी कोई भी कंपनी भारत में काम करे, उन्हें भारतीय कानून का पालन करना होगा। उसी तरह जोहो जब अमेरिका में काम करता है, तो उसे वहां के कानूनों का पालन करना पड़ता है।
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Zoho की पुरानी नीति
वेंबू ने बताया कि यह उनका नया विचार नहीं है। उन्होंने कहा हमारा यह रुख पिछले दस सालों से एक जैसा रहा है। मैंने दुनिया भर में आयोजित Zoholics Events में यही बात कही है। उनका मानना है कि असली प्राइवेसी केवल तकनीकी फीचर्स से नहीं आती, बल्कि कानून का सम्मान और भरोसे की संस्कृति से बनती है।