Cloud Seeding: कभी बादल का बरसना ईश्वर की कृपा माना जाता था, लेकिन अब वही बारिश इंसान की तकनीकी क्षमता का उदाहरण बन चुकी है। दुनिया के कई देश आज प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर रहने के बजाय कृत्रिम बारिश Cloud Seeding तकनीक का सहारा ले रहे हैं। अब भारत ने भी इस दिशा में अपना कदम बढ़ा दिया है। बीते दिनों दिल्ली में Cloud Seeding की चर्चाएं काफी सुर्खियों में रही। ऐसे में यह जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है कि Cloud Seeding तकनीक है क्या?
ईश्वर के कृपा से नहीं, इंसान की खोज Cloud Seeding तकनीक से बनेगा बादल, होगी बरसात
कृत्रिम बारिश (Cloud Seeding) क्या है?
क्लाउड सीडिंग Cloud Seeding एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसके जरिए कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है। इसे artificial rain के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे रासायनिक कण छोड़े जाते हैं, ताकि वे जलवाष्प को संघनित Condense कर बारिश की बूंदों में बदल दें। यह प्रक्रिया हवाई जहाज, या ड्रोन के जरिए की जाती है। क्लाउड सीडिंग का उपयोग सूखे की स्थिति में वर्षा बढ़ाने, वायु प्रदूषण कम करने और जल संसाधन सुधारने के लिए किया जाता है। हालांकि, पर्यावरणीय पर इसके क्या प्रभाव पड़ेंगे इसपर मंथन अभी भी जारी है।
—–विज्ञान संभाल रहा प्रकृति की जिम्मेदारी
भारत ही नहीं पूरी दुनिया के कई हिस्सों में बदलते मौसम और बढ़ते तापमान लोगों जीना मुश्किल कर दिया है। कहीं तपती धूप तो कहीं भीषण जलसंकट ने लोगों को बेचैन कर रखा है। ऐसे में तकनीक जल संकट का अस्थायी समाधान बन रही है। जंगलों में भीषण आग हो प्रदूषण जैसी समस्या इसके लिए भी बड़ा संकटमोचन बनकर उभर रहा है।
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—विश्व के कई देश अपना चुका Cloud Seeding तकनीक
चीन ने तो इसे लगभग राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बना लिया है। बीजिंग ने लक्ष्य रखा है कि 2025 तक देश के 55 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कृत्रिम बारिश की जाएगी। वहीं, UAE ने रेगिस्तानी इलाकों में ड्रोन आधारित क्लाउड सीडिंग से नमी बढ़ाने की कोशिश शुरू की है। अमेरिका में यह तकनीक अब स्नो पैक बढ़ाने और जलाशयों में पानी भरने के काम आ रही है। थाईलैंड का ‘Royal Rainmaking Project’ 1950 से लगातार जारी है। रूस इसे जंगल की आग से बचाव में उपयोग करता है, जबकि सऊदी अरब और इंडोनेशिया जैसे देश इसे जल नीति का हिस्सा बना चुके हैं।
—अब भारत की कोशिशें जारी है
भारत ने भी अब क्लाउड सीडिंग को अनुसंधान और आपदा प्रबंधन दोनों के नजरिए से अपनाया है। IIT कानपुर ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में दो ट्रायल किए, जबकि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य सूखे के दौरान इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। दिल्ली में सफल नहीं हुए लेकिन प्रयास अभी भी जारी है।
—-कृत्रिम बारिश के क्या हैं फायदे और नुकसान
इस तकनीक से फायदे यही है कि सूखे इलाकों में कृषि सिंचाई को सहारा, प्रदूषण नियंत्रण, और जंगल की आग रोकने, जलसंकट की स्थिति में मदद मिलती है। वहीं, इसमें रासायनिक कण मौजूद होने के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, इसपर वैज्ञानिक इसपर मंथन कर रहे हैं।
— क्या विज्ञान अब बनेगा बादलों का मालिक
कुल मिलाकर देखे तो यह तकनीक अब मौसम को नियंत्रित करने की वैश्विक दौड़ का हिस्सा बनती जा रही है। क्लाउड सीडिंग आज इंसान की उस जिज्ञासा का प्रतीक है, जो कहती है, अगर बादल बरसना भूल जाएं, तो हम उन्हें याद दिला देंगे। लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव क्या पड़ेगा। इसका आंकलन कर लेना भी भविष्य के लिए जरूरी है।

 
             
             
                             
                             
                             
                     
                             
                             
                             
                