BlackBerry: स्मार्टफोन की दुनिया में आज भले ही iPhone को प्रीमियम और स्टेटस का प्रतीक माना जाता है, लेकिन 2000 से दशक में यह जगह किसी और ब्रांड के नाम थी। यह वह कंपनी थी, जिसके फोन बड़े अफसरों, नेताओं, बिजनेस आइकॉन इस्तेमाल किया करते थे। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के हाथों में भी अक्सर यही ब्रैंड के मोबाईल दिखते थे। इसका सुरक्षित नेटवर्क, कीबोर्ड वाला स्टाइलिश डिजाइन और मशहूर BBM सर्विस इसे बाकी सभी फोनों से अलग बनाती थी। दुनियां के हर तीन में से एक व्यक्ति के पास यह फोन हुआ करता था। लेकिन समय ने ऐसी करवट ली कि कुछ ही सालों अर्श से फर्श पहुंच गई। नाम था BlackBerry।
सिक्योरिटी का बादशाह माने जाने वाले इस दिग्गज मोबाईल फोन कंपनी का आखिर क्या हूआ? जानिए कैसे शुरू और अंत हुआ।
कहां से शुरू हुई थी ब्लैकबेरी की कहानी
साल 1984 में इसकी शुरूआत हुई थी। कनाडा के दो इंजीनियर माइक लैजारिडिट और डगलस फ्रेजिन ने Research In Motion नाम से एक कंपनी का शुरूआत किया था। यह वायरलेस डेटा और पेजिंग सिस्टम पर काम करती थी। 1999 में पहली बार एक ऐसा डिवाइस लॉन्च किया जो जिससे जो ईमेल भेजने और रिसीव करने की जा सकती थी। इस डिवाइस का नाम था BlackBerry 850। इसके गजब के फीचर्स ने तो यूजर्स को दिवाना बना दिया था। भारत में पहलीबार 2011 में लॉन्च किया गया था।
इन फीचर्स के बदौलत राज करता था ब्लैकबेरी
कंपनी ने अपने फोन को सिर्फ एक गैजेट के तौर पर नही, एक सुरक्षित डिजिटल टूल के रूप में पेश किया। राजनेता, कॉरपोरेट जगत से लेकर सरकारी दफ्तरों में बैठे लोगों के भरोसे का पर्याय बन चुका था। मैसेज एन्क्रिप्टेड होते थे और कंपनी के सुरक्षित सर्वर पर चलते थे। जिसे हैक कर पाना बड़ी मुश्किल था। यानी दमदार सिक्योरिटी फीचर्स के बदौलत सब के दिलों पर राज करता था।
iPhone एंट्री से दबदबा पर पड़ा असर
2007 में Apple ने अपना पहला iPhone लॉन्च किया। इसमें टचस्क्रीन, मल्टीमीडिया फीचर्स के साथ बहुत बड़ा खूबसूरत डिस्प्ले और ऐप स्टोर की सुविधा थी। ब्लैकबेरी की बोर्ड से चलती थी लेकिन जैसे ही लोगों को टच स्क्रीन सुविधा मिलने लगी वे इससे दूर होते चले गए। इसके बाद जो बचे हुए यूजर्स थे उसे गूगल ने एंड्रॉयड फोन बाजार में लॉन्च कर पूरी कर दी। जो सस्ते भी थे और फीचर में भी दमदार। यूजर्स धीरे-धीरे टचस्क्रीन की ओर शिफ्ट होने लगे।
टचस्क्रीन लॉन्च करने में देरी बना कारण
सबसे बड़ी गलती यह थी कि कंपनी इस बदलाव को समझ ही नहीं पाई। उसे विश्वास था कि लोग फिजिकल कीबोर्ड और पुराने डिजाइन वाले फोन ही पसंद करेंगे। जब तक ब्लैकबेरी ने टचस्क्रीन फोन लॉन्च किए, तब तक लोग Apple और Samsung की दुनिया में रम चुके थे। इसके अलावा ब्लैकबेरी का ऐप स्टोर बेहद कमजोर था। सोशल मीडिया और मनोरंजन से भरी दुनिया में उसके पास न बेहतर ऐप्स थे, न जरूरत के हिसाब से अपडेट। जिसके बाद कई प्रयास भी हुए लेकिन यूजर्स के दिल जीतने में सफल नहीं हुए।
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कंपनी गिरते रहे शेयर छंटते रहे कर्मचारी
2011 तक जो कंपनी बाजार पर राज कर रही थी, उसका शेयर गिरकर 10 फीसदी से भी नीचे पहुंच गया। जहां कभी ब्लैकबेरी के दफ्तरों में चहल-पहल रहती थी, वहीं अब कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो गई। शेयर की कीमत 100 डॉलर से लुढ़ककर कुछ डॉलर तक सिमट गई। इस बीच कई सारे तकनीक आये सोशल मीडिया सर चढ़कर बोलने लगा और ब्लैकबेरी फिसलता चला गया।
इस साल से फोन बनाना हो गया बंद
कंपनी ने BlackBerry 10 नाम से एक नया सिस्टम लाया, लेकिन तब तक बाजार पूरी तरह बदल चुका था। न यूजर्स लौटे, न डेवलपर्स ने ऐप बनाने में दिलचस्पी दिखाई। 2016 में कंपनी ने आधिकारिक रूप से घोषणा कर दी कि वह अब फोन बनाना बंद कर रही है। आगे चलकर दूसरी कंपनियां उसके नाम पर फोन बनाती रहीं, लेकिन उन्हें भी खास सफलता नहीं मिली।
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आज कहां है ब्लैकबेरी और क्या करती है काम
बता दें कि अब ब्लैकबेरी फोन नहीं बनाती। साइबर सुरक्षा और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम करती है। जो कंपनी पहले एक ब्रैंड तौर पर राज किया और हालात उसे तकनीकी ब्रांड तक सिमट कर रह गई है। इससे यही सीख मिलती है कि बदले दुनियां के साथ अगर समय रहते बदलाव नहीं किया तो आप कितने बड़े ही ब्रैंड क्यों न हो आपको रसातल में जाते देर नहीं लगता।
