दक्षिण कोरिया ने जिस तरह AI को अपनी शिक्षा प्रणाली में शामिल किया है, वो बाकी देशों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है।
AI Textbooks: दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और AI इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। इसका असर अब स्कूलों की पढ़ाई पर भी दिखने लगा है। खासकर दक्षिण कोरिया ने इस दिशा में एक बड़ी और दिलचस्प शुरुआत की है। वहां के कई स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए AI-बेस्ड डिजिटल टेक्स्टबुक्स का इस्तेमाल हो रहा है। 2025 से शुरू हुए इस बदलाव में अब तक लगभग 30% स्कूल इन स्मार्ट किताबों को अपने कोर्स में शामिल कर चुके हैं। शुरुआत में ये किताबें अंग्रेजी और गणित जैसे विषयों में इस्तेमाल हो रही हैं।
ये AI टेक्स्टबुक्स क्या करती हैं?
इन टेक्स्टबुक्स की सबसे खास बात ये है कि ये हर बच्चे के हिसाब से पढ़ाई का तरीका बदल सकती हैं। यानी की अगर किसी बच्चे को किसी टॉपिक को समझने में ज्यादा वक्त लगता है, तो किताब खुद उस हिसाब से कंटेंट को एडजस्ट कर देती है। इससे हर स्टूडेंट अपनी रफ्तार से और अपनी समझ के अनुसार पढ़ाई कर सकता है।
टीचर्स को भी सीखना होगा नया तरीका
इस बदलाव के साथ कुछ चुनौतियां भी आई हैं। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इन AI टेक्स्टबुक्स को ठीक से इस्तेमाल करने के लिए शिक्षकों को भी नए तरीके और टेक्नोलॉजी सीखनी होगी। दक्षिण कोरिया की सरकार इस बात को समझते हुए टीचर्स के लिए खास ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रही है, ताकि वह भी इस नई व्यवस्था में खुद को आसानी से ढाल सकें। AI टेक्स्टबुक्स जैसी तकनीक से पढ़ाई ज्यादा स्मार्ट, आसान और पर्सनलाइज्ड बन सकती है। अगर ये मॉडल सफल रहा तो आने वाले समय में दूसरे देश, और शायद भारत भी, इस दिशा में कदम उठा सकते हैं।
कॉलेजों में भी बदलेगा पढ़ाई का तरीका
जैसे-जैसे स्कूलों में AI का इस्तेमाल बढ़ रहा है, अब इसकी चर्चा कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में भी तेज हो गई है। दुनियाभर के एक्सपर्ट इस बात पर विचार कर रहे हैं कि AI को हायर एजुकेशन में कैसे और कितना शामिल किया जाए। LinkedIn के को-फाउंडर रीड हॉफमैन का कहना है कि अब AI को नजरअंदाज करना नामुमकिन है। उन्होंने बताया कि आज के छात्र असाइनमेंट, निबंध और प्रोजेक्ट्स को पूरा करने में AI टूल्स की मदद ले रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक मूल्यांकन के तरीके अब उतने असरदार नहीं रह गए हैं।
AI बन सकता है भविष्य में को-एग्जामिनर
रीड हॉफमैन ने सुझाव दिया है कि भविष्य में AI को परीक्षाओं में ‘को-एग्जामिनर’ यानी सह-परीक्षक की भूमिका दी जा सकती है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मौखिक परीक्षाओं को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे किसी छात्र की समझ और सोचने की क्षमता को बेहतर तरीके से परखा जा सकता है।
क्या भारत जैसे देशों के लिए है ये मॉडल?
दक्षिण कोरिया ने जिस तरह AI को अपनी शिक्षा प्रणाली में शामिल किया है, वो बाकी देशों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है। अगर यह बदलाव सफल होता है, तो भारत समेत कई देश इस दिशा में कदम उठा सकते हैं।