Social Media Rules: सोशल मीडिया पर पहचान छिपाकर गाली-गलौज, धमकियां और फेक अकाउंट चलाने वालों के दिन अब गुजरने वाले हैं। इसके लिए कई बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। इसी सिलसले में यूरोप में Social Media के नियमों को लेकर एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। आयरलैंड ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही पूरे European Union में सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए अनिवार्य ID वेरिफिकेशन लागू कराने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। यह पहल न सिर्फ ऑनलाइन दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने की कोशिश है, बल्कि डिजिटल दुनिया को ज्यादा सुरक्षित बनाने की कारगर रणनीति भी मानी जा रही है।
फेक प्रोफाइल, बॉट्स और ऑनलाइन गालीगलौज पर कसने की तैयारी। जानें कहां और किस ने शुरू की है यह पहल।
EU प्रेसिडेंसी का इस्तेमाल करेगा आयरलैंड
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आयरलैंड अपनी आगामी यूरोपियन यूनियन प्रेसिडेंसी को इस मुहिम का आधार बनाने जा रहा है। देश के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर Simon Harris ने खुलकर कहा है कि वे यूरोप में ID Verification सोशल मीडिया अकाउंट्स को लेकर चर्चा शुरू करेंगे और बाकी सदस्य देशों को साथ लाने की कोशिश करेंगे। हैरिस का मानना है कि अगर यह नियम EU स्तर पर लागू होता है, तो इसका असर दुनिया भर के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पड़ेगा।
निजी अनुभव ने बदला सरकार का रुख
इस मुद्दे के पीछे सिर्फ पॉलिसी नहीं है पीछे एक गंभीर व्यक्तिगत अनुभव भी जुड़ा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साइमन हैरिस और उनके परिवार को सोशल मीडिया के जरिए धमकियां मिली थीं। बाद में एक महिला को इस मामले में सजा भी सुनाई गई। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि ऑनलाइन अनामता anonymity किस तरह वास्तविक दुनिया में खतरा बन सकती है। यही वजह है कि अब आयरलैंड इसे सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, सुरक्षा का सवाल मान रहा है।
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ID वेरिफिकेशन को क्यों मानता है आयरलैंड जरूरी?
साइमन हैरिस का कहना है कि Ireland में डिजिटल ऐज ऑफ कंसेंट पहले से ही 16 साल तय है। लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इसे सही तरीके से लागू नहीं कर पा रहे हैं। ID वेरिफिकेशन से फेक और बॉट अकाउंट्स पर रोक लगेगी, नाबालिगों की सुरक्षा बेहतर होगी, ऑनलाइन गालीगलौज और धमकियों में कमी आएगी। उनका मानना है कि यह समस्या सिर्फ आयरलैंड की नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर बिना पहचान के लोग कानून से बच निकलते हैं।
अमेरिका और यूरोप के बीच बढ़ता तनाव
इस प्रस्ताव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहस छेड़ दी है। अमेरिका पहले ही EU से टेक्नोलॉजी रेगुलेशन को लेकर नाराजगी जता चुका है। हाल ही में अमेरिका ने कुछ यूरोपीय हस्तियों पर वीजा प्रतिबंध भी लगाए थे। वॉशिंगटन का आरोप है कि यूरोपियन यूनियन अमेरिकी टेक कंपनियों पर सीमा से बाहर जाकर सेंसरशिप थोपना चाहती है। हालांकि आयरलैंड का कहना है कि यह कदम सेंसरशिप के लिए नहीं यूजर्स की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
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क्या दूसरे देश देंगे साथ?
आयरलैंड को उम्मीद है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर इस पहल का समर्थन कर सकते हैं। अगर बड़े यूरोपीय देश साथ आते हैं, तो यह प्रस्ताव EU कानून का हिस्सा बन सकता है।
टेक कंपनियों पर बढ़ेगी जिम्मेदारी
साइमन हैरिस ने साफ शब्दों में कहा है कि टेक कंपनियों के पास पहले से ही ऐसी तकनीक मौजूद है, जिससे वे बिना किसी नए कानून के भी यूजर्स की पहचान सत्यापित कर सकती हैं। सवाल सिर्फ इच्छा और जिम्मेदारी का है। उनका मानना है कि सोशल मीडिया कंपनियों को मुनाफे से ज्यादा लोकतंत्र और यूजर्स की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
अगर यह पहल सफल होती है, तो यूरोप में सोशल मीडिया का स्वरूप पूरी तरह बदल सकता है। फिलहाल सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि आयरलैंड की यह मुहिम यूरोप के बाकी देशों को कितनी मजबूती से अपने साथ जोड़ पाती है।
