जानें कैसे AI बदल रहा है इंसानी सेहत का भविष्य?

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जानें कैसे AI बदल रहा है इंसानी सेहत का भविष्य?
December 4, 2025

AI Anti-Aging: हमारा शरीर जितना साधारण दिखता है उतना ही कठिन है। औसतन एक एडल्ट इंसान के शरीर में लगभग 30 ट्रिलियन सेल्स होती हैं। हैरानी की बात यह है कि हर एक सेल्स हर सेकंड लगभग एक अरब केमिकल रिएक्शन करती है। यानी सिर्फ एक मिनट में हमारे शरीर में इतनी एक्टिविटी होती हैं कि अंग्रेजी में भी उसके लिए कोई सही शब्द नहीं है।

पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने सेल्स के अंदर जाकर इसके रहस्यों को समझना शुरू किया। उन्होंने पाया कि ज्यादातर बीमारियां किसी एक कारण से नहीं बल्कि कई जैविक कारणों के मेल से होती हैं। यही वजह है कि अब बायोलॉजी और हेल्थकेयर का भविष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर टिकने लगा है।

AI और बायोलॉजी मिलकर कैसे दवाओं की खोज, प्रोटीन फोल्डिंग, जीन थेरेपी और उम्र को उलटने जैसी क्रांतिकारी खोजें कर रहे हैं।

AI डेटा को पढ़कर पैटर्न समझते हैं

आज दुनिया में हमारे पास बायोलॉजिकल डेटा का पहाड़ है। जैसे कि Genome, प्रोटीन, सेल्स और मेटाबॉलिज्म के बारे में अरबों-खरबों जानकारी। इंसानी दिमाग इस डेटा को तेजी से प्रोसेस नहीं कर सकता। यहीं पर AI काम आता है। AI मॉडल्स इन डेटा सेट्स को पढ़कर पैटर्न समझते हैं नई परिकल्पनाएं बनाते हैं, डिजिटल एक्सपेरिमेंट्स करते हैं और ऐसे रिजल्ट्स निकालते हैं जो इंसान दशकों तक मेहनत करने के बाद भी नहीं कर पाते।

2024 का ‘नोबेल प्राइज इन केमिस्ट्री’ भी इसी बात का सबूत है जो Google की DeepMind टीम के वैज्ञानिकों को मिला। उन्होंने AI की मदद से प्रोटीन फोल्डिंग की समस्या हल की जो बायोलॉजी की सबसे कठिन पहेलियों में से एक थी।

क्या है AI की दिलचस्प खोज

AI की सबसे दिलचस्प खोजों में से एक है ‘प्रोटीन’ को वाक्यों की तरह ट्रीट करना। जैसे भाषा अक्षरों और शब्दों की स्ट्रिंग से बनी होती है, वैसे ही ‘प्रोटीन’ अमीनो एसिड्स की स्ट्रिंग से बने होते हैं। अब AI इन्हीं स्ट्रिंग्स में पैटर्न खोजता है।

Dyno Therapeutics के CEO एरिक केलसिक कहते हैं कि ‘पहले मुझे लगता था कि प्रोटीन बहुत जटिल हैं और इन्हें समझना लगभग नामुमकिन है, लेकिन अब AI की मदद से हम इनके पैटर्न आसानी से समझ पा रहे हैं।‘

इस तकनीक से अब ऐसी जीन थेरेपीज बनाना संभव हो रहा है, जो अल्ट्रा रेयर बीमारियों के लिए काम आएंगी। यानी वो बीमारियां जिन्हें दवा कंपनियां नजरअंदाज कर देती थीं क्योंकि उनमें मरीजों की संख्या बहुत कम होती थी। भविष्य में यह तकनीक हमें पर्सनलाइज्ड मेडिसिन दे सकती है। यानी हर इंसान के जीनोम के हिसाब से कस्टमाइज्ड इलाज।

AI इंसानी शरीर की सुरक्षा करता है

AI सिर्फ बीमारियों का इलाज ही नहीं बल्कि इंसानी शरीर को सुरक्षित रखने की दिशा में भी मदद कर रहा है। पिछले 60 सालों से वैज्ञानिक शरीर को फ्रीज करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे मकसद यह है कि अगर किसी लाइलाज बीमारी का इलाज भविष्य में खोजा गया तो फ्रीज किए गए शरीर को दोबारा जीवित किया जा सके, लेकिन समस्या यह है कि जब हम शरीर को फ्रीज करते हैं तो सेल्स के अंदर बर्फ के क्रिस्टल बन जाते हैं, जो उन्हें नष्ट कर देते हैं।

अगर सेल्स को बिना नुकसान पहुंचाए फ्रीज और फिर से जिंदा किया जा सके, तो भविष्य में ऑर्गन ट्रांसप्लांट से लेकर अमरता तक संभव हो सकती है। Wake Bio AI की मदद से ऐसे केमिकल्स खोज रहा है जो सेल्स को सुरक्षित रख सकें। यह पूरी प्रक्रिया कंप्यूटर मॉडल्स में होती है। AI बताता है कि कौन सा केमिकल काम कर सकता है और कौन नहीं।

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20,000 से ज्यादा जीन्स को इंसान पढ़ नहीं सकता

कुछ कंपनियां AI का इस्तेमाल विशेष उद्देश्यों के लिए कर रही हैं, लेकिन FutureHouse नामक संस्था का सपना इससे भी बड़ा है। उनका कहना है कि 20,000 से ज्यादा जीन्स को इंसान पढ़ नहीं सकता और याद रखना तो और भी मुश्किल है। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न एक AI साइंटिस्ट बना दिया जाए? यह AI खुद डेटा पढ़ता है, नए विचार बनाता है और वर्चुअल लैब में एक्सपेरिमेंट भी करता है। इससे रिसर्च का समय और लागत दोनों कम हो जाते हैं। भविष्य में दवाओं की खोज भी तेजी से हो सकेगी।

AI का सबसे रोमांचक इस्तेमाल है एजिंग को उलटना। Retro Biosciences के CEO जो बेट्स-लाक्रॉइक्स ने AI की मदद से Yamanaka Factors को 50 गुना ज्यादा प्रभावी बना दिया। यानी कि सेल्स को फिर से जवान किया जा सकता है। अगर यह तकनीक सफल हुई तो हम न सिर्फ उम्र को धीमा कर पाएंगे बल्कि कैंसर, डिमेंशिया और हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों से भी बच सकेंगे।

कौन-सा प्रोटीन या जीन काम करेगा

इतनी सारी संभावनाओं के बावजूद एक बड़ी समस्या यह है कि इंसान पूरी तरह समझ नहीं पा रहा कि AI ये काम कैसे कर रहा है। AI मॉडल बताते हैं कि कौन-सा प्रोटीन या जीन काम करेगा, लेकिन स्टेप-बाय-स्टेप लॉजिक इंसानों को पता नहीं चलता। यही वजह है कि कुछ लोग इस पर भरोसा करने में हिचकते हैं।

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इसका नतीजा यह रहा कि AI अब सिर्फ चैटबॉट्स या टेक्स्ट जनरेट करने तक सीमित नहीं है। यह इंसानी जीवन की सबसे गहरी पहेली बायोलॉजी को हल करने में जुटा है। यह हमें पर्सनलाइज्ड मेडिसिन देगा, यह हमें बीमारियों से पहले ही बचा सकेगा, यह शरीर को सुरक्षित रखकर भविष्य की ओर धकेल सकेगा और शायद एक दिन हमें जैविक अमरता भी दे सके। भविष्य चाहे जितना अनिश्चित क्यों न हो लेकिन इतना तय है कि AI और बायोलॉजी का मेल आने वाले दशकों में इंसानी जीवन को पूरी तरह बदल देगा।

Ragini Sinha

5 साल के अनुभव के साथ मैंने मीडिया जगत में कंटेट राइटर, सीनियर कंटेंट राइटर, मीडिया एनालिस्ट और प्रोग्राम प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया है। बिहार चुनाव और दिल्ली चुनाव को मैंने कवर किया है। अपने काम को लेकर मुझे पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। काम को जल्दी सीखने की कला मुझे औरों से अलग बनाती है।

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