सरकार का कहना है कि ऐसे गेम्स से एडल्ट लोगों और बच्चों को लत लग जाती हैं जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
India AI Talent Gap: देश का IT हब कहे जाने वाले बेंगलुरु में एक युवा स्टार्टअप फाउंडर अपने ऑफिस में इधर-उधर टहल रही है। वाइटबोर्ड पर लिखे AI हेल्थकेयर से जुड़े आइडियाज उसकी नजरों के सामने हैं। फंडिंग और कॉन्सेप्ट दोनों उसके पास हैं लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसे योग्य AI डेवलपर्स नहीं मिल रहे। LinkedIn और जॉब पोर्टल्स पर घंटों खोजने के बावजूद सही उम्मीदवार हाथ नहीं आ रहे।
भारत के लिए है बड़ी चुनौती
यह समस्या केवल एक फाउंडर तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत के सामने खड़ी एक बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में भारत दुनिया की सबसे बड़ी AI क्रांति को लीड कर सकता है लेकिन अगर योग्य स्किल्ड वर्कफोर्स तैयार नहीं हुई तो यह सुनहरा मौका हाथ से निकल सकता है। एक्सपर्ट का अनुमान है कि 2026 तक देश में करीब 20 लाख AI से जुड़े रोजगार पैदा होंगे। अब सवाल यह है कि क्या भारत इस मौके का फायदा उठा पाएगा?
डिजिटल पावरहाउस बनने की राह पर भारत
भारत आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है। यहां सरकार और उद्योग दोनों ही AI को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। IndiaAI और National Data Governance Policy जैसी योजनाएं यह दिखाती हैं कि भारत AI को आर्थिक विकास का बड़ा साधन बनाना चाहता है।
UPI जैसे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर ने पहले ही यह साबित कर दिया है कि भारत बड़े पैमाने पर तकनीकी बदलाव लागू करने में सक्षम है। यही वजह है कि Google, Microsoft और Amazon जैसी वैश्विक कंपनियां भारत में अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं। वहीं Zoho और Freshworks जैसे भारतीय स्टार्टअप्स भी अपने बिजनेस में AI को शामिल कर चुके हैं।
एक रिपोर्ट बताती है कि अगर भारत ने रणनीतिक रूप से AI अपनाया तो 2035 तक देश की GDP में 500 अरब डॉलर से ज्यादा का योगदान संभव है।
स्किल गैप बनी सबसे बड़ी रुकावट
इस सफलता की राह में सबसे बड़ी रुकावट है योग्य टैलेंट की कमी। भारत हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियर तैयार करता है लेकिन इनमें से केवल 3% ही AI नौकरियों के लिए तैयार होते हैं। इसका कारण है पुरानी शिक्षा प्रणाली। यूनिवर्सिटी के कोर्स अब भी पुराने सिलेबस पर बेस्ड हैं जहां थ्योरी पर ज्यादा और प्रैक्टिकल स्किल्स पर कम ध्यान दिया जाता है। Machine Learning, Cloud AI Tools और रियल-टाइम प्रोजेक्ट्स जैसी चीजें पढ़ाई का हिस्सा नहीं बन पातीं। नतीजा यह है कि कंपनियों को कर्मचारियों को दोबारा ट्रेन करना पड़ता है या प्रोजेक्ट्स को आउटसोर्स करना पड़ता है।
समाधान की दिशा
- शिक्षा में सुधार: इंडस्ट्री और यूनिवर्सिटी मिलकर नए कोर्स बनाएं, जिनमें पहले साल से AI और मशीन लर्निंग की पढ़ाई हो। इंटर्नशिप और हैकाथॉन से छात्रों को प्रैक्टिकल अनुभव मिले।
- समावेशी शिक्षा: मेट्रो शहरों के अलावा छोटे शहरों और गांवों तक AI ट्रेनिंग पहुंचानी होगी। क्षेत्रीय भाषाओं में ऑनलाइन कोर्स और सस्ते बूटकैंप बड़ी मदद कर सकते हैं।
- इंडस्ट्री की भागीदारी: TCS, Infosys और Wipro जैसी कंपनियां पहले से अपने कर्मचारियों को ट्रेन कर रही हैं। इसी तरह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम्स की जरूरत है।
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AI सिर्फ कोडिंग नहीं
AI सिर्फ प्रोग्रामिंग तक सीमित नहीं है। प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग, डिजाइन, नीति और नैतिकता जैसे कई नए करियर विकल्प उभर रहे हैं। इसका मतलब है कि आर्ट्स और कॉमर्स के छात्र भी AI इंडस्ट्री में अपना करियर बना सकते हैं।